एक कबिता पेश है। पसंद आए तो comment कीजिएगा।
शीर्षक- मेरी डायरी।
साँझ ढले, दीपक जले,
यादों के सब फ़ूल खिले।
अलमारी के सामानों में
डायरी और वो फ़ूल मिले।
डायरी को जब देखा तो,
उस पर वो थोड़ी धूल मिली।
धूल भरी, सामानों में,
आज मुझे वो खूब मिली।
जीवन की यादों में दबी,
दिल की बातें हुई हरी।
घुमड़-घुमड़ बदली के जैसी,
यादों की फ़िर बूँद गीरी।
उफ़्फ़ !
मेरी पूरानी डायरी,
उसमें लिखी वो एक शायरी,
एक ख़्वाब,
और
उसमें वो दबा हुआ एक गुलाब।
कुछ पलछिन होती यादें,
कुछ स्याही के धब्बे,
उनसे लिखे कुछ शब्द,
शब्दों में दबा अहसास,
आज मिला मुझे!
और
सब मुझसे बातें सी करने लगे।
अचानक ये क्या !
ये तो याद मुलाक़ातें करने लगे।
कुछ गीली बातें,
कुछ रीती बातें,
कुछ बीती बातें,
सब पटल पर छा गया।
डायरी को देखते ही
एक नशा सा आ गया।
कैसा अब ये आलम है,
हर सफ़हे पर वो दिखते हैं।
गुलाब पकड़ हाथों में,
वो सपने अपने लगते हैं।
कंपकंपाते होठों पर ,
नाम अब उसका आ गया।
उफ़्फ़
हाथों की इस डायरी ने,
हमें कहाँ पहुँचा दिया।
उस दरख़्त की याद आयी,
जब मिलन पर पत्ते झड़ते थे।
कुछ पत्तों की आहट में,
हम आलिंगन करने लगते थे।
आँखों से आँख मिला कर जब,
हाथों को हमने थामा था।
वो पहली बातें, पहला चुम्बन,
दरख़्त तले हो जाता था।
तुम अब भी यादों में आते हो,
डायरी तो बहाना है।
इन सफ़हों को जीवन में,
अब पलट-पलट मुस्काना है।
नीरज मनन
Very well penned ….i could see the diary
Very well penned
Beautiful lines👆👌👌